मद्धम मद्धम ही सही मुस्कुराना चाहता हूँ, थोड़ा सा ही सही पर गम भूलना चाहता हूँ, चाहत नही मुझे किसी आसमान की, अपनी हिस्से की बस ज़मीं चाहता हूँ, ज़िन्दगी हैं अनजान राहों का सफर, फिर भी इसे अपना जानकर निभाता हूँ, हजारों अनजान चेहरों के दरमियान , बस एक "अपना" सा चेहरा चाहता हूँ, दर्द और गम तो पाता है हर इंसान, और मैं भी जुदा नही जानता हूँ, है गम बांटने वाले भी बहुत, पर किसी "अपने" के सामने रोना चाहता हूँ, हूँ आज मैं तनहा इतना की, कागज़ कलम को हाल-ऐ-दिल बताता हूँ, बस एक बार देखले मुडके ए ज़िन्दगी, गुज़रे हुए हर लम्हे को जीना चाहता हूँ, नलिन .......
Comments
kalyan ho
narayan narayan
एक निवेदन हटा दो यह बाधा शब्द पुष्टिकरण की .. मेरे ब्लॉग पर दस्तक दीजिये अच्छा लगे तो टीका भी अवश्य करें
Jai Ho...mangalmay ho
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साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.